Tuesday 8 May 2012

कबीरा  खड़ा बाज़ार में .....

ज़मीन से  भारी पाप होता है, सुने थे हम
सूखे पत्ते की तरह नेकी को उड़ते देखा।

फ़रिश्ते डर  के सहम के छिपे से रहते हैं 
आज के दौर में शैतान खुदा है देखा।

उसूलो इल्म हदीस और कुरान हैं अच्छे 
पेट की आग में इन सबको भी  जलते देखा।

कन्हैया संग खेलता था सुदामा अपना
उनके बचपन को, जवानी में बदलते देखा ।

माटी का लाल था, हम सबका मसीहा था जो
दौलत ओ हुस्न में, उसको भी बहकते देखा ।

रुस्तम ए हिन्द था, ताकत का  वारापार न था
उम्र की शाम में, उसको  भी घिसटते देखा ।

 तड़प के मर रहा था, इक गरीब रस्ते पर
हाय! लुकमान को, सौदा वहाँ  करते देखा ।

चाँद के पार  है  वो, मैं  खड़ा वहीं  का वहीं
कल को आज, कल की राह  का रोड़ा देखा ।

संग इंसान के इंसानियत भी जिन्दा रहे
तमाम जेहादों  में, इंसानियत का खूँ  देखा ।

दीदार ए  रब के लिये, उसने छोड़ दी दुनिया
मंदिरों  मस्जिदों  में उसको भटकते देखा ।

देवता आते थे, जब भी पुकारते थे हम
बेपर्दा द्रौपदी है, उनको भी ग़ाफ़िल देखा ।

चाँद सूरज को ग्रहण लगता था, खलता था हमें
अपने जज़्बात ख़यालात बदलते देखा ।

पवित्र करने हमें स्वर्ग से आई गंगा
गंगा खुद हो गयी है मैली, ये मैंने देखा।

तौलेंगे अपना वज़ूद आ के मेरे दर पे सब
हँस  के  खाक़  ए  मसान को यही  कहते देखा । 

शेष फिर .........




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