भारत माता की पुकार ……. जागो फिर एक बार
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आतंकवाद और हमारी भूमिका या करणीय कर्म तथा पालनीय धर्म पर माँ भारती हमसे क्या कह रही है?
मन के भाव इस इस प्रकार से उठे। शायद आपके मन के भाव भी यही हों। कुछ सड़ी गली मानसिकता वाले इसपर भी राजनीती कर रहे हैं। आश्चर्य है। और हम सब सहिष्णु-असहिष्णु का गेम खेल रहे हैं, ये उससे भी बड़ा आश्चर्य है।
भरा हो पेट, तो शायरी अच्छी लगती है।
अमन हो वतन में, तो ग़ज़ल भी अच्छी लगती है।
रो कर पुकार रही अपनी माता भारती।
श्रृंगार तान छोड़ बेटे, और कुछ सुना।
फूलों की सेज़ छोड़ कर, शमशीर अब उठा।
खुश रहें नौनिहाल ग़र, हल्ला भी धुन लगे।
हर शै लगे रंगीन, वीराँ भी चमन लगे।
कुदरत भी लगे है शोख, और माटी भी खुशबू दे।
बनारस की सुबह रूहानी, शाम-ए-लखनऊ सजे।
भुजायें क्यों तेरी फड़के नहीं, आँखें लाल क्यों नहीं?
दानिशमंद है तू, सूरमा, बुजदिल भी तू नहीं।
दामन मेरा दागदार करे किसकी है मजाल?
मेरे तो हैं सुभाष और अशफ़ाक़ जैसे लाल।
शिवा बनके रखी लाज, राणा भी बना था तू।
पृथ्वीराज, छत्रसाल और टीपू बना था तू।
भूषण बन के सोते हुओं को तुमने जगाया था।
फिरंगी जुल्मो सितम देख कर तू तमतमाया था।
भगत सिंह बनके मेरे बेटे, तूने रखी मेरी लाज।
गाफिल हो के क्यों बैठा है, तुझको क्या हुआ है आज?
बेटों तुमने मेरे नाम का डंका बजाय था।
उस्ताद-ए-आलम, सोने की चिड़िया भी बनाया था।
दहशतगर्द दामन को मेरे, खींचे खड़े हैं आज।
बेटों, देखते क्या, उठो जागो, रखो मेरी लाज।
क्या खूँ में तुम्हारे सुर्खी वो बाकी नहीं रही?
या दूध की तासीर मेरे ख़त्म हो गयी।
उठोगे नहीं गर आज, मिल जाओगे मिट्टी में।
ढूंढ़े से मिलोगे तुम, किसी बस संग्रहालय में।