Friday 12 February 2016

परिवर्तन
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टोलेरैंट रहते मुझे, बीते वर्ष हजार।
टूटा मैं और मुल्क भी, हो गया बंटाधार।
हो गया बंटाधार, खड़ी खटिया भी हो गई।
बिस्तर भी भयो गोल, इमेज की थू-थू हो गई।
जिसका जब भी मन हुआ, मारे घूंसा-लात।
इंडिया वाला जानकर, करे न ठीक से बात।
जब मैं ऐसा था नहीं, सब कुछ था अनुकूल।
एक हाथ में गीता थी तब, दूजे में त्रिशूल।
तीन लोक चौदह भुवन, कहाँ नहीं था नाम।
देव-यक्ष-गन्धर्व-मनुज सब, करते थे सम्मान।
बिनु भय होय न प्रीत, कालजयी है सत्य यह।
चिंता मत कर मीत ,सुधर रहा हूँ आज फिर।

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